राजमहल के पास अंदर शहर के भीतर स्थित चौबीसी मंदिर, जैन तीर्थयात्रियों के लिए, जो चंदेरी की यात्रा करते हैं, एक और आकर्षण है। सन्1836 ई. में निर्मित, यह मंदिर आसपास के क्षेत्र में स्थित अन्य जैन तीर्थ स्थलों जितना पुराना मंदिर नहीं है, फिर भी इसकी ख्याति है कि हर साल दसों हजार तीर्थयात्री यहाँ आते हैं। इस मंदिर दो भागों में बंटा है। पहला हिस्सा एक बड़े गुंबददार छत से ढका है और उसके अंदर सभी 24 तीर्थंकरों के प्रतीक चिन्ह हैं। इस हिस्से में बाहुबली की एक विशाल मूर्ति भी है।
दूसरे भाग में सभी 24 तीर्थंकरों की बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ हैं, जो कि प्रत्येक एक विशेष रंग के पत्थर से बनी है क्योंकि जैन धर्म की आस्था के अनुसार, प्रत्येक तीर्थंकर एक विशेष रंग के पैदा लिये थे। एक मंदिर के अंदर एक दीवार पर ये दोहा लिखा है:
दो गोर, दो साँवले,
दो हरियाल, दो लाल,
सोलह कंचन वर्ण हैं,
तिथुन बंदो, तिथुन काल
इसका अर्थ है, दो गोरे हैं, दो काले हैं, दो हरे हैं और दो लाल। सोलह सुनहरे हैं, जिनकी की हम सभी हमेशा पूजा करेंगे।
मंदिर में जैन पांडुलिपियाँ व ताड़ के पत्ते पर लिखित पांडुलिपियों का एक बड़ा संग्रह भी हैं जो संस्कृत में है। इस मंदिर का निर्माण उस समय के जमींदार चौधरी लाला सवाई सिंह हृदय शाह द्वारा कराया गया था।