कटी घाटी फाटक से होकर जो सड़क जा रही है वो रामनगर महल की ओर जाती है, जो की एक संग्रहालय भी है जिसका देख रेख मध्य प्रदेश पुरातत्व संग्रहालय और अभिलेखागार विभाग द्वारा किया जाता है। महल के रूप में कहा जाने वाला यह संरचना वास्तव में एक शिकार व आरामगाह है और जो 1698 ई. में महाराजा दुर्जन सिंह बुंदेला द्वारा बनावाया गया था। इसके निर्माण में प्रयुक्त पत्थर ब्लॉक आकार, आकार या सजावटी नक्काशी में समरूप नहीं हैं। यह स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि इन ब्लॉकों को आसपास के क्षेत्र के पुराने व बर्बाद स्मारकों की संरचनाओं से लाया गया था।
जो पत्थर दिखायी दे रहे हैं वो हिंदू मंदिरों से टुकड़े, देवी – देवताओं की मूर्तियों तथा कुछ अच्छी तरह से संरक्षित सती पत्थरों के उदाहरण हैं। मंदिरों के अवशेष 9वीं सदी से 12 वीं सदी की है जबकि सती पत्थर मुख्य रूप से 16वीं से 18 वीं सदी की हैं। ये अवशेष रानी लक्ष्मीबाई सागर के निर्माण के बाद पानी के नीचे जलमग्न गांवों से एकत्र किए गए थे।
एक ओर मेहजातिया पुल और दूसरी ओर हरियाली से घिरा यह महल एक लोकप्रिय पिकनिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। गवर्नर बाजहत खान ने इस कृत्रिम झील के निर्माण का आदेश दिया था और इसे शुरू में बाजहत खान तालाब नाम दिया गया था, लेकिन बाद में इसका नाम विकृत होकर मेहजातिया हो गया। यह झील ऐतिहासिक महत्व का भी है। यही वो जगह थी जहाँ कि बाबर ने 28 जनवरी, सन् 1528 ई. को चंदेरी किले पर हमले से पहले रात में डेरा डाला था।