हजरत वजीहुद्दीन यूसुफ दिल्ली के निकट कलकाहारी में वर्ष 1260 में पैदा लिये थे, जहाँ उन्होंने अपने प्रारंभिक वर्ष बिताये। जवान होकर वह दिल्ली के लिये कूच कर गये जहां वे हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के एक शिष्य बन गये। Continue reading “दरगाह मखदूम शाह विलायत” »
यह जैन मंदिर हाथ का पुरा मोहल्ले में बाहर शहर के भीतर ही स्थित है। हाथ का पुरा, जिसे पहले मनगंज के नाम से जाना जाता था, वह क्षेत्र है जहां पुराने जमाने में सबसे समृद्ध जैन व्यवसायियों का अपना घर-द्वार हुआ करता था। मंदिर की नींव व निर्माण की सटीक तारीख तो खुदी हुई नहीं पायी गयी है, लेकिन मंदिर के भीतर स्थापित मूर्तियों में से कुछ की तिथि के अनुसार जो सबसे पुरानी है वो सन् 967 ई. की है और अन्य 10 वीं सदी और सन् 1204 ई. की लगती है।
दिल्ली दरवाजा, शहर के किलेबंदी में से एक मुख्य द्वार, इसका नाम शायद इसलिये दिया गया था कि इसका रूख उत्तर यानी दिल्ली की ओर था। आज यह व्यस्त सदर बाजार, जो कि चंदेरी में खरीदारी का मुख्य क्षेत्र है, के मुख्य प्रवेश द्वार के रूप में काम करता है। Continue reading “दिल्ली दरवाजा” »
हरकुण्ड बावडी के निकट चंदेरी मुँगावली रोड पर स्थित इस शैव मंदिर के स्थापना की तारीख ठीक से नहीं ज्ञात है क्योंकि एकमात्र शिलालेख जो पाया गया है वह अपठनीय है। सिर्फ तारीख को पढा जा सका है जो शायद सन् 1214 ई. है।
इस मंदिर के भीतर एक और मंदिर है जो भगवान शिव और भगवान गणेश के प्रति समर्पित है, जिसकी वास्तुकला बुंदेला काल की प्रतीत होती है। परन्तु, एक शिवलिंग जो यहां स्थापित है, निश्चित रूप से प्राचीन है।
राजमहल के पास अंदर शहर के भीतर स्थित चौबीसी मंदिर, जैन तीर्थयात्रियों के लिए, जो चंदेरी की यात्रा करते हैं, एक और आकर्षण है। सन्1836 ई. में निर्मित, यह मंदिर आसपास के क्षेत्र में स्थित अन्य जैन तीर्थ स्थलों जितना पुराना मंदिर नहीं है, फिर भी इसकी ख्याति है कि हर साल दसों हजार तीर्थयात्री यहाँ आते हैं। इस मंदिर दो भागों में बंटा है। पहला हिस्सा एक बड़े गुंबददार छत से ढका है और उसके अंदर सभी 24 तीर्थंकरों के प्रतीक चिन्ह हैं। इस हिस्से में बाहुबली की एक विशाल मूर्ति भी है।