यह बावड़ी शहर से कुछ दूरी पर इसके दक्षिण में कंधारगिरी पहाड़ी की तलहटी में स्थित है। दो शिलालेख इसकी सीढ़ियों की दीवारों के भीतर स्थापित पाये जा सकते है। नासक लिपि में फ़ारसी भाषा में खुदे हुए ये शिलालेख छंद के रूप में उत्कीर्ण हैं। वे उल्लेखित करते है कि ये बावड़ी सवाई खैर और गुले बादशाह, जो कि शेख बुराहमुद्दीन की पत्नियाँ थीं, के द्वारा सुल्तान नसीरुद्दीन खिलजी के शासनकाल के दौरान बनवायी गयी थी।
23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ को समर्पित, यह मंदिर अंदर शहर के भीतर स्थित है। यह जैन तीर्थयात्रियों, जो देश भर से चंदेरी की यात्रा को आते हैं, के बीच लोकप्रिय है। हालांकि मंदिर की नींव की सही तारीख मालूम नहीं है, यह निश्चित रूप से चौबीसी जैन मंदिर से पुरानी है। एक शिलालेख जो मंदिर के भीतर निहित है, उसमें 13वीं सदी दिनांकित है।
अंदर शहर के भीतर स्थित इस बावड़ी को सन् 1454 ई. में संत हजरत मूसा कुआद्दीन ने बनवाया था। एक मस्जिद, जो की उनके ही द्वारा बनवायी गयी थी, तथा उनका मजार आसपास में ही स्थित हैं। इस बावड़ी का पानी अन्य सभी बावड़ियों के पानी में सबसे साफ है, यह इतना साफ है कि अगर एक सिक्का नीचे गिर गया है तो वह ऊपर से भी स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है।









