कीर्ति दुर्ग सबसे पहले 11 वीं सदी में प्रतिहार के राजा कीर्ति पाल द्वारा बनवाया गया था और इसका नाम उनके नाम पर ही रखा गया है। जो संरचना हम आज देखते हैं वह मूल किला नहीं है, इसका कई बार पुनर्निर्माण करवाया गया है और इसमें अन्य शासकों द्वारा और अधिक निर्माण करवाया गया है जिनमें महमूद खिलजी, दुर्जन सिंह बुंदेला और अन्य शामिल हैं। चंद्रगिरी पहाड के उच्चतम शिखर पर निर्मित यह किला चंदेरी में एक विशिष्ट संरचना है जो पूरे चन्देरी शहर के लगभग हर बिंदु से दिखाई देता है।
इसके 5 किलोमीटर लंबे परिधि में कई स्मारक पडते है जो कि स्वयं में देखने लायक हैं। इसके एक छोर पर खिलजी मस्जिद है जिसका मेहराब और खंभे सुंदर फूलदार डिजाइन व पवित्र कुरान के छंद के साथ खुदी हुई है। हवा पौर, नौलखा पैलेस और हजरत अब्दुल रहमान नरनूली की कब्र ये सभी देखने लायक हैं। बरदारी एक ऐसा सुविधाजनक बिन्दु है जहाँ से न केवल शहर का एक विहंगम दृश्य दिखता है, वरन् अब बर्बाद हो चुका कीरात सागर, कटी घाटी गेटवे और बाबर कटान भी दिखता है। इस बिंदु से डूबते हुये सूर्य का दृष्य विशेष रूप से मनभावन है।
अतीत में चंदेरी के महत्व को इससे समझा जा सकता है कि इस किले पर लगातार कइ बार हमले किये गये थे। इनमें से सबसे प्रसिद्ध है सन् 1528 ई. में बाबर द्वारा किया गया हमला जिसमें कि 600 से अधिक राजपूत महिलाओं ने अपना सम्मान बचाने की खातिर जौहर या जनप्रथानुसार सामुहिक आत्महत्या किया था। इस दुःखद घटना का एक स्मारक भी किला परिसर के भीतर देखा जा सकता है। अन्य मौजूद स्मारकों में बैजू बावरा स्मारक, गिलौआ ताल और एक अंग्रेजी सैनिक का समाधि भी मौजूद हैं।
इस किले में पहुँचने के तीन अलग-अलग रास्ते हैं। जो मूल मार्ग योजनानुसार बनाई गयी थी वह खूनी दरवाजा और हवा पौर के माध्यम से होकर जाता है। इस किले में एक चढ़ाई चढकर जोगेश्वरी मंदिर और फिर एक और खड़ी सीढ़ी के होकर पहुँचा जा सकता है। इन दिनों एक आधुनिक मोटर जा सकने योग्य सड़क है जिसका इस्तेमाल मुख्य रूप से किले में पहुँचने के लिये किया जाता है।
ग्वालियर के तत्कालीन महाराजा जिवाजीराव सिंधिया ने एक बंगले का निर्माण करवाया था जो कि किले के उत्तरी कगार पर स्थित है और जो अब एक पीडब्ल्यूडी गेस्ट हाउस है तथा सामान्यतः उसे कोठी के रूप में पुकारा जाता है