यह सरल पर भव्य इमारत, जो कि चंदेरी शहर से 4 किलोमीटर की दूरी पर इसागढ रोड पर स्थित है, को सन् 1445 ई. में एक जीत के स्मारक के रूप में बनाया गया था। इतिहासकार मोहम्मद कासिम ‘फरिश्ता’ ने अपने तारीख-ए-फरिश्ता में उल्लेख किया है कि यह महल मालवा के सुल्तान महमूद शाह खिलजी के द्वारा कालपी की लड़ाई में सुल्तान महमूद शा्रकी पर अपनी विजय की स्मृति में बनाया था।
यह सुरुचिपूर्ण संरचना जिसे एक 12 फुट ऊँचे चबुतरे पर बनाया गया है, परमेश्वर तालाब के पास खड़ी है। बाहर दीवार पर लंबी पहली मंजिल और थोड़ी कम ऊँची दूसरी मंजिल जो कि धनुषाकार संरचनाओं की एक श्रृंखला है में अच्छी तरह बांटा गया है। स्मारक का सबसे बढिया अंग सामान्य, टेढ़ा कोष्ठक है जो दोनों स्तरों पर इसको समर्थन कर रहे हैं। लेकिन स्मारक के अंदर सच में केवल एक मंजिला एकल वर्ग का कमरा है।
कटी घाटी फाटक से होकर जो सड़क जा रही है वो रामनगर महल की ओर जाती है, जो की एक संग्रहालय भी है जिसका देख रेख मध्य प्रदेश पुरातत्व संग्रहालय और अभिलेखागार विभाग द्वारा किया जाता है। महल के रूप में कहा जाने वाला यह संरचना वास्तव में एक शिकार व आरामगाह है और जो 1698 ई. में महाराजा दुर्जन सिंह बुंदेला द्वारा बनावाया गया था। इसके निर्माण में प्रयुक्त पत्थर ब्लॉक आकार, आकार या सजावटी नक्काशी में समरूप नहीं हैं। यह स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि इन ब्लॉकों को आसपास के क्षेत्र के पुराने व बर्बाद स्मारकों की संरचनाओं से लाया गया था।
मालवा सल्तनत के महमूद खिलजी के संरक्षण में सन् 1450 ई. में निर्मित, यह सुन्दर संरचना वास्तव में एक मदारीस (शिक्षक) और दारूल उलूम (विश्वविद्यालय) के आलिम (कुलपति) की कब्र है जो इस अवधि के दौरान सेवा में था और जिसके खंडहर अब आसपास के क्षेत्र में देखे जा सकते है। मदरसा एक भ्रामक नाम है, यह शायद इस स्मारक के आसपास के क्षेत्र में एक मदरसे की उपस्थिति के कारण इसके साथ कालांतर में जुड़ गया।
यह हेरालडीक संरचना, जो कि पूरी तरह से एक लिभिंग रॉक को काटकर बनाया गया है, चंदेरी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है, दक्षिण में बुंदेलखंड और उत्तर में मालवा के बीच एक लिंक का काम करता है। जमीनी सतह से 230 फुट ऊपर, सिर्फ दरवाजा ही 80 फुट ऊँचा और 39 फुट चौड़ा है। फाटक के पूर्वी दीवार पर देवनागरी और नासक दोनों लिपियों में एक शिलालेख है, जो कि बताता है कि इसका निर्माण चंदेरी के तत्कालीन राज्यपाल शेर खान के बेटे जिमान खान द्वारा सन् 1495 ई. में कमीशन किया गया था.