बेतवा नदी के किनारे पर स्थित देवगढ़ न सिर्फ एक मनोरम प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर स्थल है वरन् एक महान ऐतिहासिक महत्व का जगह भी है। चंदेरी से 71 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह आज सिर्फ एक छोटा सा गांव है, लेकिन प्राचीन समय में, यह एक समृद्ध शहर और एक महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र रहा होगा।
यहाँ कि सभी पुरातात्विक इमारतों में सबसे प्रसिद्ध 5वीं शताब्दी की दशावतार विष्णु मंदिर, जो कि गुप्ता काल की कला और वास्तुकला की एक उत्कृष्ट कृति है। नर-नारायण, शेषासयी और गजेन्द्रमोक्षा मूर्ति कला की रचनाएँ हैं जो उस समय के कलाकारों के द्वारा पायी महान ऊंचाइयों को प्रतिबिंबित करते हैं।
इसके अलावा, कई अन्य मंदिर जैसे वरहा मंदिर, अपनी उत्कृष्ट मूर्तियों के साथ जो कि इसी काल से संबंधित हैं, भी अस्तित्व में हैं। इन मूर्तियों में से कई अब देवगढ़ संग्रहालय में संरक्षित हैं। देवगढ़ में पाये गये शिलालेख तीन अलग-अलग ब्राह्मी, शंख, और देवनागरी लिपियों में है, जो इस जगह को निःसंदेह अति प्राचीन साबित करता है। इसके अलावा रूचि की जगह कीर्ति गिरि पहाड़ी किला है जो राजा कृतिवर्मन द्वारा 12 वीं सदी में बनवाया गया था।
यह जगह हजारों जैन पत्थर की मूर्तियों का खान भी है, विशेषकर तीर्थंकरों की छवियों वाली मूर्तियों के लिए। इन मूर्तियाँ की तारीख सन् 552 ई. तक है और ये रॉक कट गुफाओं में खुदी हुई हैं तथा मंदिरों में रखी गयी हैं। इससे देवगढ़ जैन श्रद्धालुओं के लिए एक लोकप्रिय भ्रमण स्थल बनता है जहाँ कि वे अक्सर साहू जैन संग्रहालय और दिगंबर जैन धर्मशाला में आते हैं।
यह जगह वन्य जीवन और प्रकृति के प्रति उत्साही लोगों के लिए भी उपयुक्त है क्योंकि एक बड़े क्षेत्र को घेर दिया गया है ताकि स्थानीय वनस्पतियों और पशुवर्ग का संरक्षण हो सके जो महावीर वन्यजीव अभयारण्य है।
देवगढ़ से करीब 10 कि.मी. पश्चिम बहती मठ है, जो कि हिंदू से संबद्ध एक प्राचीन मंदिर है, जो की एक गुप्तकालीन निर्माण है।