यह बावड़ी शहर से कुछ दूरी पर इसके दक्षिण में कंधारगिरी पहाड़ी की तलहटी में स्थित है। दो शिलालेख इसकी सीढ़ियों की दीवारों के भीतर स्थापित पाये जा सकते है। नासक लिपि में फ़ारसी भाषा में खुदे हुए ये शिलालेख छंद के रूप में उत्कीर्ण हैं। वे उल्लेखित करते है कि ये बावड़ी सवाई खैर और गुले बादशाह, जो कि शेख बुराहमुद्दीन की पत्नियाँ थीं, के द्वारा सुल्तान नसीरुद्दीन खिलजी के शासनकाल के दौरान बनवायी गयी थी।
25 नवम्बर सन्1502 ई. को इस पर काम शुरू किया गया और ये बावड़ी 1504 ई. में पूरी तरह तैयार हुई।








