जामा मस्जिद, जहाँ नमाज के समय 2000 से अधिक व्यक्तियों के समायोजन की क्षमता है, चंदेरी में सबसे बड़ा तथा सबसे पुरानी मस्जिद है और संभवतः बुंदेलखंड में भी। इस प्रभावशाली स्मारक की आधारशिला तब रखी गयी थी जब चंदेरी घयासुद्दीन बलवान द्वारा शहर के अपने कब्जे में करने के बाद दिल्ली सल्तनत के नियंत्रण के अधीन आया।
इस मस्जिद के प्रवेश द्वार को अलंकृत पत्ते व फूल और विभिन्न ज्यामितीय पैटर्न के साथ सजाया है। यद्यपि यह मूल रूप से मस्जिद के लिए नहीं बना था, वरन् तमारपुरा के जर्जर हो चुके महल से लाकर बनवाया हुआ है। ये रास्ता एक विशाल, पत्थर के फर्श वाले केंद्रीय आंगन की ओर जाता है जिसके कि बायें व दायें ओर मेहराबदार गलियारा है। गलियारा के छज्जे को पतले व टेढ़े कोष्ठकों से सहारा दिया गया है जो उस समय के दौरान चंदेरी में बनाये स्मारकों का परिचायक है। आंगन के भीतर एक वजूचश्मा है जो लोगों के द्वारा नमाज अता करने से पहले अपने हाथ और पैर धोने के काम में लाया जाता था। हालांकि, अब यह सूख गया है और उपयोग में नहीं है। आंगन के बाद एक मुख्य हॉल है जो तीन बड़े गुंबदों के साथ ढका है।
मस्जिद के पूर्वी दीवार में एक शिलालेख पर मस्जिद का उल्लेख भी नहीं आता है और उस पर दिलावर खान घोरी का नाम खुदा हुआ है। इस बात की पूरी संभावना है कि तमारपुरा के खंडहरों से प्राप्त वस्तुओं में यह पट्टिका भी शामिल थी।