इस मंदिर की स्थापना के पीछे एक किदवंती है कि कैसे आधुनिक चंदेरी का निर्माण हुआ, जब प्रतिहार के राजा कृतिपाल ने जल का चमत्कार देखा। यद्यपि इस तथ्य के प्रमाण में कोई शिलालेख नहीं मिला है जिससे की इसकी स्थापना की तारीख की पुष्टि हो सके, मंदिर के कुछ तत्व इस ओर इशारा करते हैं कि वे संभवतः 11 वीं शताब्दी या संभवतः उससे पहले की सदियों के हैं।
एक पहाडी पर स्थित इस मंदिर में पहाड़ी के बीच से होकर जानेवाली एक लंबी सीढ़ियों की चढान के द्वारा पहाड के तल से पहुँचा जाता है। मंदिर में जाने का एक अन्य रास्ता सीढ़ियों की खड़ी चढा़ई सा है जो कीर्ति दुर्ग किले के पास से नीचे आता है। मंदिर की मुख्य मूर्ति जागेश्वरी देवी की है जो कि एक खुले गुफा में स्थित है। आधुनिक मंदिर गुफा के आसपास बनाया गया है ताकि उन भक्तों को जो दर्शन और पूजा के लिए आते हैं उनको समायोजित किया जा सके। इसके अलावा मंदिर परिसर के भीतर दो बड़े शिवलिंग हैं जिनकी पूरी सतह पर 1100 नक्काशीदार शिवलिंग शोभित कर रहे हैं। एक अन्य शिवलिंग पर भगवान शिव का चेहरा सभी चार दिशाओं में खुदा हुआ है।
कई प्राकृतिक झरने जिनके पानी को पवित्र प्रवाह माना जाता है, मंदिर के पास चट्टान से नीचे की ओर बहते हैं। चारों ओर हरियाली से घिरा, पक्षियों, बंदरों और कलकल करते पानी की आवाज़ के साथ मंदिर का माहौल ऐसा है मानों यह एक जंगल के भीतर बसा हो।
सीढ़ियों पर कुछ दूरी की चढ़ाई के बाद,बाईं तरफ एक तालाब है जो सागर के रूप में जाना जाता है और जहाँ सभी झरने व नदियों का पानी एकत्र होता है। इस तालाब के चारों ओर चार प्राचीन मंदिरों के अवशेष पाए गए हैं।








