चंद्रगिरी पहाड़ी में स्थित यह बावड़ी का निर्माण एक ही चट्टान को काटकर किया गया है और यहाँ पहाड़ी से नीचे बहने वाले विभिन्न झरनों का पानी इक्कठा होता है खासकर मानसून काल में। Continue reading “एक पत्थर की बावड़ी (आब-ए-जमाम मस्जिद के पास)” »
अंदर शहर में राजमहल के पास स्थित है, इस बुंदेला काल की संरचना चंदेरी में भगवान गणेश को समर्पित मंदिरों में सबसे प्रसिद्ध है। एक बड़े पत्थर का टुकड़ा जिसमें भगवान गणेश की चार भुजाओं वाली उकेरी गयी है, मंदिर की मुख्य मूर्ति है. यह मंदिर धुंधराज के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि लोगों का मानना है कि मंदिर की एक यात्रा धुंधला और धूमिल दृष्टि का इलाज करने के लिए पर्याप्त है।
इस पहाड़ी का नामकरण चौथे खलीफा मौला अली के नाम पर हुआ है, जिनका परिवार कर्बला में शहीद हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि चंदेरी से एक संत के लिए हर साल मुहर्रम के महीने में कर्बला की यात्रा को जाते थे और वापस उसकी पवित्र मिट्टी को लेकर आते थे। किसी साल वह जा नहीं सके और एक विकल्प के रूप में इस पहाड़ी पर पवित्र मिट्टी का एक टीला बनाया और वहीं प्रार्थना की। तभी से यह पहाड़ी मौला अली हिल के रूप में प्रसिद्ध है। इसके अलावा इस पहाड़ी पर हजरत बिस्मिल्लाह शाह की मजार और एक आलम गिरि मस्जिद भी है।
चंदेरी के सभी बावड़ियों में सबसे बड़ी, चकला बावड़ी एक वर्गाकार सीढ़ीदार कुँआ है जिसे खिलजी शासन के दौरान बनाया गया था। ऐसा कहा जाता है कि यह बावड़ी शाही घराने की औरतों के लिये खासतौर पर था और आम लोगों के लिये नहीं था। इस बावड़ी के किनारे दो कब्र हैं, एक शेख राजी की पत्नी का है, जबकि दूसरा बिना किसी शिलालेख का है और शायद एक संत का है। इसके अलावा इसके पास में ही एक बड़े महल का खंडहर हैं जो संभवतः खिलजी काल का है। यह शहर के दक्षिण में स्थित है जो खंदरगिरि जोने के रास्ते पर पड़ता है।
दिल्ली दरवाजा के पास स्थित मानसी महेश्वर बुंदेला काल का एक शैव मंदिर है। एक 23 लाइन लंबा शिलालेख है जो कि संस्कृत व स्थानीय बोली के साथ मिश्रित भाषा में नागरी अक्षरों में इस मंदिर की एक दीवार पर लिखा है। इससे पता चलता है कि मंदिर सन् 1724 ई. में बनवाया गया था और राजकुमार मान सिंह बुंदेला द्वारा इसकी नींव रखी गई थी।