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पैगंबर मोहम्मद के चाचा अली के बेटे की मौत की घटना को चंदेरी में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। तीन आदमकद आकार के ताजिया इस समारोह के लिए तैयार किये जाते हैं जिनके नाम हैं बादशाह का ताजिया, वजीर का ताजिया और बंजारी टोला।

प्रत्येक ताजिया की संरचना लकड़ी की होती है जबकि बाहरी आवरण कपड़े का होता है, ये अन्य स्थानों से अलग है जहां पर अखबार को ताजिये के लिए पसंदीदा कवर बनाया जाता है।

मुहर्रम के इस्लामी महीने के सातवें दिन की पूर्व संध्या पर, अंदर शहर, बाहर शहर और मैदान गली से तीन जुलूस चिर-परिचित ताजिया ले जाने वालों के नेतृत्व में निकलते हैं। ये जुलूस मौला अली के पहाड़ पर सूर्यास्त के समय इक्कठा होते हैं जहां फतेह ख्वानी पढ़ने के बाद मिठाई का वितरण होता है। तब वे आधी रात को इमामबाड़ा पर इकट्ठा होते हैं जहां एक पवित्र आग जलाई जाती है। यह समारोह तब शुरू होता है जब एक धातु की हथेली को आग में डाला जाता है और पूरी सभा में से एक आदमी को लगता ​​है कि एक जिन्न उसके शरीर में प्रवेश कर चुका है। कुछ ही मिनटों के भीतर, वह आग में कूदता है, आग की लपटों से सुलगता धातु की हथेली को निकालता है, इसे एक कपड़े के टुकड़े में लपेटता है और दौड़ना शुरू करता है। इससे पहले कि वह बहुत दूर जाये, है, भीड़ उसे जंजीर से बांध लेती है जो उसके साथ-साथ दौड़ना शुरू कर देती है। मुहर्रम के महीने की 8 वीं, 9 वीं और 10 वें दिनों पर भी शोक समारोह जारी रहता है। अंदर शहर, बाहर शहर और मैदान गली में अलग-अलग समय पर ताजिया का जूलूस निकलता है, इसमें कई तरह की प्रतियोगिताओं और तलवारबाजी और अन्य खेलों-प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। 10 वी दिन की शाम को, सब कोलाहल के बाद, तीनों जुलूस दिल्ली दरवाजा पर मिलते हैं और करबला की ओर प्रस्थान करते हैं जिसमें बादशाह ताजिया आगे रहता है और वजीर का ताजिया व बंजारी टोला इसके पीछे रहते हैं।

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