उर्र नदी के दाहिने किनारे पर अवस्थित बूढ़ी चंदेरी, प्राचीन काल की चंद्रपुरी, गुर्जर प्रतिहारों की एक बड़ी बस्ती थी और संभवतः उनकी राजधानी भी।
इस जगह को पहली बार भारतविद और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पहले निदेशक, अलेक्जेंडर कनिंघम, द्वारा सन् 1865 ई. में खोजा गया था। बाद में, जर्मन यात्री क्लॉस बूने ने भी इस जगह का दौरा किया।
इस जगह में करीब 55 मंदिरों के खंडहर तथा उनके सभी शेष अवयव वर्तमान हैं, सभी एक दुर्ग की दीवार से घिरे हैं। ये मंदिर ज्यादातर जैन धर्म से संबद्ध हैं। इन जैन मंदिरों में से तीन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संरक्षण के अंतर्गत आ गए हैं और इसलिए एक बहुत संरक्षित स्थिति में हैं, दूसरों की तुलना में, जो गंभीर परित्यक्त अवस्थता में हैं।
हैरानी की बात है कि इनमें से कुछ संरचनाओं को संभवतः बुंदेला काल के दौरान संरक्षित किया गया क्योंकि कुछ संरचनाओं के उपरी भाग में बुंदेला स्थापत्य शैली की छाप है, जबकि नीचे की मंदिर के संरचनाएँ स्पष्ट रूप से 10वीं या 11वीं सदी की हैं।
एक नक्काशीदार शिलालेख जो कि 16वीं सदी की शुरुआत का अंकित है, एक सती स्तंभ पर पाया गया है जिसमें कि इस जगह के नाम को नसीराबाद के रूप में उल्लेख करता है, नसीरुद्दीन खिलजी शासक के नाम पर। इसका तात्पर्य है कि एक छोटी सी बस्ती मुस्लिम शासकों के दौरान भी अस्तित्व में यहाँ थी और यह उतना वीरान नहीं था जितना आज है।
चंदेरी शहर के उत्तर में स्थित, बूढ़ी चंदेरी तक पहुँचने के लिये पहले राज्य राजमार्ग संख्या 19 पर 12 किलोमीटर चलना पड़ता है और फिर एक 8 किलोमीटर लंबे रास्ते के लिए पश्चिम मुड़ना पड़ता है।चुँकि यह बस्ती से दूर घने जंगल के भीतर स्थित है, यह सलाह दी जाती है कि यात्री एक समूह में जायें। यह जगह उर्र नदी और विन्ध्याचल पहाड़ी रेंज के साथ लगे होने से एक सुहाना प्राकृतिक परिदृश्य देता है।